सुबह-सुबह अतिप्रसन्नता से मयंक का दिल नाच उठा जब कम्प्यूटर की सूखी कार्टरेज़ जिसे उसने रात भर पानी में डुबोए रखा था इसी उम्मीद से कि शायद चल जाए। वही कार्टरेज़ धकाधक सुन्दर शब्दों को कागज़ पर फर्राटे से छाप रही थी। यकायक उसकी निगाह उसकी पत्नी पर पड़ी जो बड़ी लगन से टेबल पर बैठी कुछ लिख रही थी।
मयंक ने आवाज़ दी-‘‘रजनी ! देखो वो बेकार व सूखी कार्टरेज़ चल पड़ी। फिर चुटकी काटते हुए बोला-‘‘मेरी कार्टरेज़ व पत्नी दोनों एक समान है दोनों के एक से रिजल्ट हैं।’’
रजनी-‘‘हां भई! मुझे भी लिखने में प्रेरित कर तुमने किसी मुकाम पर पहुंचाने के लिए धक्का लगाया। लेकिन जनाब हीरा तो पहले खान में ही दबा होता है। दुनियां उसकी चमक देखती है, तराशने वाले की मेहनत कोई नहीं देखता।’’
पति-‘‘आखिर जौहरी तो मैं ही हूं। हीरा न पहचानता तो चमकता कैसे और दुनियां तक पहुंचता कैसे ?’’
रजनी-‘‘मेरा लिखने का काम तो लगभग रूक गया था जरा पुश बैक न मिलता और मेहनत व लगन की तपस्या के लिए प्रेरित न किया जाता तो मेरी किताब कभी पूरी नहीं होती।’’
पति-‘‘अब समझ जाओ मंजिल तक पहुंचने के लिए कदमों की गति कभी नहीं रोकनी चाहिए सतत गतिशील रहने से मंजिल कभी न कभी अवश्य मिलती है।
इतने में ही कम्प्यूटर से खर्र खर्र करता पन्ना निकला जिसपर गहरी स्याही से लिखा था- ‘‘कर्म महान है, लगातार चलते रहो
समय को मत देखो, मंजिल मिलेगी जरूर।’’
Sunday, April 26, 2009
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बहुत सुन्दर प्रेरक प्रसंग। बढिया लिखा है।बधाई।
ReplyDelete‘‘कर्म महान है, लगातार चलते रहो
समय को मत देखो, मंजिल मिलेगी जरूर।’’
sach karmanyevadhikaraste.
ReplyDeleteRachna Ji,
ReplyDeleteBahut badhiya aur prerak laghukatha.badhiya dhang se apne karm ke mahatv ko rekhankit kiya hai.samaya mile to mere blog par ayen.apka svagat hai.
Poonam
‘‘कर्म महान है, लगातार चलते रहो
ReplyDeleteसमय को मत देखो, मंजिल मिलेगी जरूर।’’
rachna ji ...
satya vachan....akser dosro ko zera se prerna hamare ander ki urja ko gatisheel bana deti hai.....
aapka blog bahut achcha laga