‘‘भरा हो पेट तो संसार जगमगाता है
लगी हो भूख तो इमान डगमगाता है’’
संसार में कौन बड़ा इसका द्वन्द तो देवताओं में भी चला है और आखिर में गणेशजी को सर्वप्रथम याद करने का आशिर्वाद मिला । एक बार इसी तरह भूख और मौत भी अपना दम्भ भरने लगी। मौत ने भूख से इतरा कर कहा-‘‘देख मैं सबसे बड़ी हूं एक बार आ जाऊं प्राणी दुनिया मेंं नहीं रह सकता। मैं अजेय हूं, पराजेय हूं अत: बड़ी में हूं।’’ भूख बोली -‘‘मौत तू तो एक बार आती है मगर मैं तो हर रोज आती हूं लोग मुझे खिला पिलाकर सम्मान के साथ विदा करते हैं। अगले दिन में पुन: आ जाती हूं अत: मैं बड़ी।’’ मौत इस बात को मानना नहीं चाहती थी और अपनी बात पर अड़ी रही। भूख ने उसे फिर समझाना चाहा कि -‘‘देखो तुम्हारा तो अंत है जिसपर तुम अभी इतरा रहीं थीं लेकिन मैं अनन्त हूं। मेरा कभी अंत नहीं।’’ ये बात सुनते ही मौत अपने दम्भ पर शरमा गई” और उसे समझ आ गया कि दम्भ करने से कोई बात नहीं होती , बड़ा वही है जो अपने आगे दूसरे को कुछ समझे।
बहुत सही बात...
ReplyDeleteVERY NICE.
ReplyDeleteभूख का नर्तन
ReplyDeleteरेल की पटरियां
और उन पड़ी दो लाशें
कैसे उठाएं किसे तलाशें
एक आदमी और एक जानवर
दोनों कट गये
इत्तेफाकन,
एक दूसरे से सट गये
लोग उचक-उचक देखते
आते और चले जाते
समय का परिवर्तन हुआ
भूख का नर्तन हुआ
अब भीड़ बढ़ रही थी
लाश उठाने को,
लड़ रही थी
भीड़ आदमियों की थी
लड़ती रही
लाश आदमी की थी
सड़ती रही
भीड़ ने आदमी की लाश का
क्या करना था
उससे किसका पेट भरना था
.....................
प्रतिक्रिया में एक कविता
bhukh,bhukh,bhukh hee hai sab kuchh. narayan narayan
ReplyDeleteभीड़ ने आदमी की लाश का
ReplyDeleteक्या करना था
उससे किसका पेट भरना था
वाह रचना जी-खूब कही
रचना जी
ReplyDeleteनए ब्लाग की बधाई। लघुकथा अच्छी थी। बराबर लिखती रहें, मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें।
prerna dayak sunder rachna. shubh kamnaye.
ReplyDeletesundar rachana,
ReplyDeletePAWAN JI ki comment rupi kavita bahut hi sundar hai.
--------------------------------------"VISHAL"
सच है - घमन्ड करने से कोई बड़ा नही होता। स्वागत है हिन्दी चिट्ठजगत में।
ReplyDeleteकृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें। यह न केवल मेरी उम्र के लोगों को तंग करता है पर लोगों को टिप्पणी करने से भी हतोत्साहित करता है। आप चाहें तो इसकी जगह कमेंट मॉडरेशन का विकल्प ले लें।