Thursday, October 29, 2009

समाज सुधार (छत्तीसगढ की मासिक पत्रिका उदंती.com माह अगस्त 2009 में प्रकाशित)


शहर का जाना माना रईस था, जो कभी कबाड़ी हुआ करता था। प्रोपर्टी खरीद फरोख्त ने उसे शायद यह ऊंचाई दिखाई थी। शहर के हर कोने में बनी जाने कितनी बिल्डिंग का मालिक। समाज सेवक के रूप में पूजा जाने वाला बशेशर प्रसाद पैसा दानखाते में पानी की तरह बहाता। गरीब अविवाहित लड़कियों के धन देकर विवाह कराता। ताश की महफिलों में उठना बैठना उसकी दिनचर्या में शामिल था। महफिल से तभी उठता जब गडि्डयों का भार उसके हाथों में होता। एक हाथ से पैसा लेता दूसरे हाथ से गरीब लड़कियों के परिवारों पर खर्च करता। उसका रवैया सामान्य जन की समझ से बाहर था।

एक दिन श्यामा की मां को उसके बारे में पता चला और वो उससे मिलने उसके घर गई। बशेशर प्रसाद उस समय अपने बैडरूम में था, उसे भी वहीं बुला लिया। श्यामा की मां की नजर दो नवयुवतियों पर पड़ी जो उसके बैड के पास बैठी थीं ये देख उसकी उदारता से वह गद्गगद् हो उठीं कि गरीबों का कितना ख्याल रखता है बशेशर प्रसाद। अपने आराम के समय में भी दुखियों का दुख दर्द सुन रहा है। खैर! श्यामा की मां बोलीं-‘‘नमस्ते साहब! मैं एक गरीब दुखिया हूं मेरी जवान व खूबसूरत बेटी हाथ पीले करने लायक हो गई है आप थोड़ी सहायता करते तो हम पर उपकार होता।’’ बशेशर-‘‘उपकार कैसा? यह तो मेरा धर्म है कल से उसे यहां दो घण्टे के लिए भेज देना। मैं देखूंगा जो बन पड़ेगा करूंगा।’’ “यामा की मां घर लौट आयी घर आकर खुशी खुशी श्यामा को अगले दिन बशेशर प्रसाद के घर खुद छोड़ने गई। बशेशर प्रसाद के पी.ए. ने उसका नाम नोटबुक में लिखा और उसे बशेशर के बैडरूम में ले गया। मां देखती रह गई कमरे का दरवाजा बन्द हो गया। बशेशर के समाजसुधार कार्य में एक और पुण्य कार्य जुड़ गया, तो क्या हुआ? शबरी भी तो झूठे बेर राम जी को खिलाती थी ।




Friday, October 16, 2009

दीपावली पर लक्ष्मी व सरस्वती का संग-संग पूजन का महत्व


शुभ लक्षणों का सांकेतिक त्यौहार है दीपावली । यूं तो यह त्यौहार पांच दिन तक मनाया जाता है, कार्तिक कृष्णन त्रयोदशी ( धनतेरस ) से कार्तिक शुक्ल द्धतिया ( भाई दूज ) तक चलने वाले इस पंचमहोत्सव पर्व में दीपावली ही मुख्य त्यौहार है । पंचमहोत्सव पर्व के मध्य कार्तिक माह की अमावस्या के इस दिन लक्ष्मी व सरस्वती को संग संग पूजा जाता है एंव गणेश की उपासना की जाती है ।इस दिन पूजा में पोस्टरों, तस्वीरों,व फोटों में लक्ष्मी,सरस्वती व गणेश एक साथ देखने को मिलते हैं । इस दिन इनकी संग संग पूजा का महत्व जानना आवश्यक है । लक्ष्मी जी धन धान्य का सुख देने वाली हैं । इनके वरदान से जीवन की दरिद्रता दूर हो जाती है व सरस्वती जी विद्या एंव ज्ञान की दाता हैं । इनके वरदान से मानव जीवन में मलिनता व अज्ञानता का अंधकार मिटकर समृिद्ध का उजियारा हो जाता हैं। साथ ही गणेश जी को बुिद्ध का देवता माना गया है । इसीलिए इस दिन लक्ष्मी व सरस्वती की संग संग पूजा व गणेश की उपासना कर लोग धन, ज्ञान व बुिद्ध की प्राप्ति की कामना करते हैं। पुराणों में वर्णित है कि सरस्वती देवी का वाहन ‘हंस’ व ‘लक्ष्मी’ जी का वाहन उल्लू है । प्रत्यक्ष रुप में वैसे यह विरोधाभास है ,क्योंकि ज्ञानी व्यक्ति धनी नहीं मिलता और जो धनवान होता है उसमें बुिद्ध व ज्ञान की कमी स्वत: ही हो जाती है । अत: सर्वांग गुणों की प्राप्ति के लिए लक्ष्मी व सरस्वती को संग संग पूजा जाता है । विद्या का ज्ञान वह भंडार है जो अक्षुण्य,अचौर्य व असीम है । जो व्यक्ति पुस्तकीय ज्ञान के अलावा यथार्थ ज्ञान भी प्राप्त कर लेता है यानि साधन सम्पन्न होकर अनुभव से ज्ञान प्राप्त करता है तो वह हंस के गुणों को प्राप्त हो जाता है ओर हंस कहलाता है ।इसी की उच्च पदवी परमहंस कहलाती है । हंस (पक्षी) को बुद्धमिान पक्षी माना गया है ,वह दूध पी लेता है और उसमें मिले जल को छोड़ देता है । सीपी में से मोती चुनके निगल लेता है और दूसरी वस्तुओं को छोड़ देता है । यह ज्ञान का परिचायक गुण है । इसी प्रकार ज्ञानी मनुष्य वह होता है जो सबके उत्तम गुणों को ग्रहण करता है और दोषों की और देखता भी नहीं । ऐसा करते करते वह पूर्ण ज्ञानी व पूर्ण पुरुष बन जाता है । साथ ही संसार से उसका मोह छूटने लगता है ,वह आत्मानंद का रसपान कर मस्ती में झूमने लगता है और मुग्ध व चिंता रहित हो जाता है और हंस कहलाता है। ऐसे लोगों के मस्तिष्क में सरस्वती का निवास रहता है ,यही उनकी सवारी है । अत: आत्मिक सुख की प्राप्ति व मोक्ष का मार्ग पाने के लिए सरस्वती की अराधना की जाती है। लक्ष्मी जी धन की देवी हैं, इनका वाहन ‘उलूक’ या ‘उल्लू’ बताया गया है। लक्ष्मी को पाते ही मनु’य विवेकहीन हो जाता है ,वह अपने आप को सबसे उंचा, सुखी एंव सबसे बुद्धमिान समझने लगता है । जबकि लक्ष्मी जी तो स्वभाव से चंचला हैं, वह कभी एक जगह नहीं रहतीं ,आज यहां तो कल वहां । अगर आज उन्हें पाकर कोइ धनवान है, तो उनके जाने से कल वही कंगाल भी हो सकता है । धन का नशा व्यक्ति को ऐसा मतवाला बना देता है कि वह ईश्वर को ही भूल जाता है । गरीब और दुखी लोगों की और आंख उठा कर भी नहीं देखता । शरीर के पालन पोषण और भोग विलास को ही वह अपना मुख्य कर्तव्य समझने लगता है । अपने स्वार्थ के लिये दूसरों को कष्ट देने और दूसरों की पूंजी छीनने में भी उसे संकोच नहीं होता । गरीबों को सताना उसके लिए मामूली बात हो जाती है , ऐसा अहंकारी , विवेकशून्य मनुष्य उल्लू ही कहा जा सकता है । जिसे आगे पीछे का ज्ञान न हो,जो अंधे की तरह गलत रास्ते पर जा रहा हो , भलाई बुराई को न जानता हो और परिणाम की न सोचे वह उल्लू बोला जाता है ।लक्ष्मी जी भी यहां वहां के चक्कर में मनुष्य को उल्लू बना देती हैं। इसी कारण यही उल्लू इनका वाहन है। जीवन की ज्योत व ज्ञान का घी ही सच्चे मायने में अंधकार को दूर करने में सक्षम है ,जो धन रुपी दीपक के शरीर में प्रज्जवलित होते हैं। दीपावली की जगमगाती राित्र अधर्म पर धर्म की विजय का पाठ दोहराती , दीपिशिखाओं से सज्जित राम आदर्श प्रस्तुत करती हैं । पूजन के साथ-साथ ‘श्री सूक्त और कनक धारा सत्रोत’ का भी पाठ किया जाता है । इस दिन लोग तिजोरी, बहीखाते, लेखनी का पूजन भी करते हैं। जिसमें स्वंय लक्ष्मी,सरस्वती व गणेश वास करते हैं । बिना ज्ञान व बुिद्ध ( सरस्वती )के धन (लक्ष्मी) की प्राप्ति असंभव है । इसलिए लक्ष्मी व सरस्वती का संग संग पूजन आवश्यक है ।