Monday, June 29, 2009

पानी और बुलबुला

आपको पता है प्रकृति बोलती है । ये चांद सितारे,हवा,पानी,फूल,पत्थर सभी आपस में बातें करते हैं । ऐसी बातें जिनकी न तो कोई भाषा होती है,और ना ही शब्द । हमें सुनायी देती है तो एक हल्की गूंज जिसे हम इनका शोर समझते है । यक़ीन नहीे होता तो सुनिये पानी और बुलबुले का वार्तालाप, एक दिन पानी ने नितांतउदास स्वर में बुलबुले से कहा - ‘मित्र,तुम हर क्षण मुझमें उठते हो और दूसरे ही क्षण नष्ट हो जाते हो । तुम्हारे इस क्षणिक जीवन से क्या लाभ ?’
बुलबुले ने उत्तर दिया - ‘ अरे! हम हमारे लिये थोड़े ही जीते हैं,हम तो दूसरों की आंखें खोलने के लिये जीते हैंकि तुम भी हम जैसे ही हो । तुम्हारा जीवन भी क्षणिक है ।’
पानी ने फ़िर पूछा - ‘ तो क्या तुम्हारी बात सुनी है किसी ने आज तक ?’
बुलबुला - ‘भले ही न सुने कोई मग़र हमें तो अपने छोटे से जीवन को सोद्धेश्य बनाना ही है ।’
जब यह बात एक बुलबुला सिखा रहा है तो हम क्यों न सीखें अपने जीवन को उद्वेश्यपूर्ण बनाना

Wednesday, June 3, 2009

शुभाशुभ की कसौटी पर छींक (जयपुर की पत्रिका ज्योतिष सागर दिसम्बर 2002 में प्रकाशित लेख )


भारतीय प्रष्ठभूमि में कुछ मान्यताएं व धारणाएं इस कद़र रची बसी हैं,कि समय असमय हमें प्रभावित करती हैं ।पहले लोग इन्हें स्वभावतः स्वीकारते थे, हमारे रामायण जैसे महाग्रंथ में भी छींक का उल्लेख किया गया है कि -
दीख निषादनाथ भल टोलू । कहेउ बजाउ जुझाऊ ढोलू ।।
एतना कहत छींक भइ बांए । कहेउ सगुनिअन्ह खेत सुहाए।।
अर्थात् भरत के आगमन की बात सुनकर निशादराज ने वीरों का बढ़िया दल देख कर कहा कि जुझाऊ ढोल बजाओ ।इतना कहते ही बाईं ओर छींक हुई ।शगुन विचारने वालों ने कहा कि खेत सुन्दर है (जीत होगी)। बूढ़े व्यक्ति ने कहा भरत से मिल लीजिये, उनसे लड़ाई नहीं होगी क्योंकि इस समय भरत राम जी को मनाने जा रहे हैं ।शकुन ऐसा कह रहा है कि विरोध नहीं है, यह सुनकर निशादराज गोह ने कहा बूढ़ा ठीक कह रहा है बिना विचारे कोई काम करके मूर्ख लोग पछताते हैं । अतः ये संदर्भ बताता है कि रामचन्द्र जी के ज़माने से छींक पर शगुन-अपशगुन के विचार चले आ रहे हैं ।जिन्होनें कई बार अच्छा परिणाम दिया तो कई बार शत्रुता या युद्ध की घोषणा करवायी ।
मगर आज इस बात को तार्किक दृष्टि से देखा व जाना जाता है । उसका लाज़िक समझने के उपरांत ही हम इसे निर्मूल सिद्ध कर सकते हैं ।ऐसी ही एक मान्यता छींक के प्रति बनी हुई है । 
छींक का आना यूं तो शारीरिक प्रतिक्रिया है , परन्तु लोगों ने इसके विषय में अलग - अलग धारणाएं बना रखी हैं । छींक का विभेदन किया जा चुका है ।शुभ व अशुभ छींक कह कर छींक को परिस्थिति के परिणाम में विभाजित कर दिया है । बनते काम की छींक शुभ होती है , और अगर काम बिगड़ गया तो अशुभ ।
छींक की प्रचलित धारणाएं इस प्रकार हैं -जैसे
शुभ व मंगलकारी छींक के मान्य विचार -
1. चलते समय अपनी पीठ के पीछे अथवा बाईं ओर को छींक हो तो वह शुभ फल देती है ।
2. चलते समय ऊंचाई पर छींक हो तो वह शुभ फलदायक होती है ।
3. यदि किसी व्यक्ति को एक साथ दो छींकें हों तो वह शुभ फलदायक होती है ।
4. आसन , शयन , शौच , दान , भोजन , औषधि-सेवन , विद्यारम्भ , बीज बोने का समय , युद्ध अथवा विवाह के लिये जाते समय छींकना शुभ फलदायक होता है ।
अशुभ व अमंगलकारी छींक के मान्य विचार -
1. चलते समय यदि सामने की ओर कोई छींकें तो झगड़ा होता है ।
2. चलते समय दाईं ओर छींक हो तो धन की हानि होती है ।
3. कन्या , विधवा , वेश्या , रजस्वला , मालिन , धोबिन तथा हरिजन स्त्री की छींक अशुभ फल देने वाली होती है । इनके छींकने पर यात्रा स्थगित कर देनी चाहिये तथा कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिये ।
काम का बनना या बिगड़ना योग , संजोग व समय तय करता है । सफलता या असफलता की कुंजी समय के हाथ में और आपके अपने द्वारा किए कर्मों के फल का प्रतिरूप है । सुख - दुख की यह धूप - छांव हर मनुष्य को झेलनी पड़ती है , फिर इनके बीच में यह छींक कहां से आ गई ?
कहिये छींक पर भी किसी का बस हो सकता है ? आजकल बढ़ते प्रदूषण में छींक आना मामूली बात है । असाधारण परिस्थिति व अशुद्धियों का शरीर में प्रवेश छींक को जन्म देते हैं ।घर और बाहर के अलग-अलग वातावरणों में छींक के कारण भी बदल जाते हैं ।
घर से संबंधित कारण
1. रसोईघर से आती हुई धस या उड़ते छौंक का नाक में प्रवेश्। करना ।
2. ग़र्म सर्द़ तापक्रम का अन्तर होना ।( जैसे एयर कंडीशंड कमरों या शो रूम आदि से एकदम बाहर आना ।)
3. सूर्य की ओर सीधे देखने से उसकी तेज़ रौशनी व पराबैंगनी किरणों का नाक व आंखों में प्रवेश ।
4. धूल के कणों का साफ़ - सफ़ाई के समय नाक में प्रवेश।
बाहृय कारण
1.वायु प्रदूषण (वाहनों एंव कारखानों की बढ़ती संख्या से होने वाले प्रदूषण का नाक में प्रवेश करना) ।
2. धूल के कण , तीक्ष्ण हवा, धुएं ,एंव अशुद्ध वायु का नाक में प्रवेश ।
जिस तरह से गाड़ी के इंजन में कचरा जाने से रोकने के लिये तेल छननी का इस्तेमाल किया जाता है , उसी प्रकार ईश्वर द्वारा निर्मित मानव रूपी गाड़ी के इंजन में अवांछनीय व अशुद्ध चीज़ो के प्रवेश को रोकने के लिय नाक का छननी के रूप में प्रयोग किया गया है । जो अवांछनीय व अशुद्ध चीज़ों को नाक में प्रवेश करते ही स्वचालित शारीरिक वैज्ञानिक प्रक्रिया, छींक के माध्यम के द्वारा उन्हें बाहर निकाल देती है । जिसे भगवान ने शरीर की सुरक्षा की दृष्टि से समय-समय पर गाड़ी के हार्न की तरह इस्तेमाल किया है । इसके प्रति लोगों को अपनी धारणाएं समय के अनुसार बदलनी होगीं ।